परिचय
झारखंड नाम सुनते ही हमारे मन में हरे-भरे जंगल, आदिवासी संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य की तस्वीर उभरती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस नाम का क्या शाब्दिक अर्थ है और इसका इतिहास कितना पुराना और विविधतापूर्ण है? इस ब्लॉग में हम झारखंड के नामकरण, इसके ऐतिहासिक संदर्भ और राज्य बनने की प्रक्रिया को विस्तार से जानेंगे।
1. झारखंड का शाब्दिक अर्थ
झारखंड शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है — “झार” जिसका मतलब है वन या जंगल, और “खंड” जिसका अर्थ है भू-भाग या प्रदेश। अतः झारखंड का शाब्दिक अर्थ होता है “वन का प्रदेश” या Forest Land। यह नाम क्षेत्र की प्राकृतिक वन संपदा और हरियाली का प्रतिनिधित्व करता है।
2. झारखंड के ऐतिहासिक नाम
झारखंड का इतिहास बहुत पुराना और समृद्ध है। प्राचीन और मध्यकालीन ग्रंथों में इस क्षेत्र को अलग-अलग नामों से जाना गया:
- ऐतरेय ब्राह्मण में इसे पुंड या पुंड्रा कहा गया।
- वायु पुराण में इसका नाम मुरुंड और विष्णु पुराण में मुण्ड है।
- महाभारत के दिग्विजय पर्व में इसे पुंडरीक-देश और पशु-भूमि के नाम से उल्लेखित किया गया।
- समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति में इसे मुरुंड देश कहा गया।
- मुग़ल कालीन दस्तावेज़ों जैसे आइन-ए-अकबरी में इसे कोकरा, खोखरा (खुखरा/कुकरा) आदि नामों से जाना गया।
इस प्रकार, झारखंड का नाम और पहचान समय के साथ विकसित हुई, जो उसकी सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधता को दर्शाती है।
3. आधुनिक काल में “झारखंड” नाम का प्रचलन
झारखंड शब्द का पहला उल्लेख 13वीं शताब्दी के कॉपर-प्लेट में मिलता है। मुगल काल में अबुल फ़ज़ल ने अपनी किताब अकबरनामा में छोटानागपुर क्षेत्र को “झारखंड” नाम से संबोधित किया। धीरे-धीरे यह नाम पूरे क्षेत्र के लिए स्थायी हो गया और आज के झारखंड राज्य का परिचायक बन गया।
4. झारखंड राज्य गठन और नामकरण की कहानी
झारखंड के अलग राज्य बनने की माँग दशकों से आदिवासी संगठनों और स्थानीय लोगों द्वारा उठाई जाती रही। इस आंदोलन के दौरान राज्य के नाम को लेकर भी बहस हुई। प्रारंभ में इसे “वनांचल” (Vananchal) नाम दिया जाना प्रस्तावित था, जिसका अर्थ भी “वन प्रदेश” है। लेकिन प्रमुख आदिवासी नेता और कवि लाल रणविजय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ बहस कर “झारखंड” नाम को स्थायी रूप से अपनाने में सफलता प्राप्त की।
15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य का गठन हुआ, जो आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के दिन हुआ, जिससे इस दिन का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व और बढ़ गया।
5. निष्कर्ष
झारखंड केवल एक भौगोलिक नाम नहीं है, बल्कि यह क्षेत्र की वन संपदा, आदिवासी विरासत, ऐतिहासिक विविधता और स्वतंत्रता की भावना का प्रतीक है। इसके नामकरण में प्राचीन ग्रंथों से लेकर आधुनिक राजनीति तक की गाथाएँ जुड़ी हैं। झारखंड का नाम हमें उसकी प्रकृति, संस्कृति और संघर्ष की कहानी बताता है।