कृत्रिम वर्षा (Artificial Rain): एक परिचय

विषय सूची

परिभाषा:
कृत्रिम वर्षा एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसमें विशेष रसायनों को बादलों में छोड़ा जाता है ताकि जल वाष्प का संघनन तेज हो और कृत्रिम रूप से वर्षा कराई जा सके। इसका मुख्य उद्देश्य वायु प्रदूषण को कम करना, जल संकट से राहत देना तथा वातावरण में नमी बढ़ाना है।

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मुख्य तकनीक: क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding)

इस प्रक्रिया में निम्नलिखित रसायनों का छिड़काव किया जाता है:

  • सिल्वर आयोडाइड (AgI)
  • पोटैशियम आयोडाइड
  • सोडियम क्लोराइड (NaCl)
  • ड्राई आइस (ठोस CO₂)

ये रसायन संघनन नाभिक (Condensation nuclei) का कार्य करते हैं, जो जल वाष्प को आकर्षित करके वर्षा की बूंदों का निर्माण करते हैं।

कृत्रिम वर्षा के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ

  • संभावित वर्षा-युक्त बादलों की उपस्थिति
  • पर्याप्त आर्द्रता एवं वायुमंडलीय अस्थिरता
  • अनुकूल तापमान व हवा की दिशा

भारत में कृत्रिम वर्षा: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

  • 1951: टाटा कंपनी द्वारा भारत में पहला प्रयास
  • 1950 के दशक से: विभिन्न राज्यों द्वारा समय-समय पर प्रयोग

  • महत्वपूर्ण राज्य स्तरीय पहलें:
  • तमिलनाडु: सूखा राहत हेतु नियमित उपयोग
  • कर्नाटक: “प्रोजेक्ट वर्षाधारी”
  • महाराष्ट्र: “प्रोजेक्ट मेघदूत”

प्रमुख लाभ

  1. वायु प्रदूषण में कमी:
    दिल्ली जैसे महानगरों में PM कण और अन्य प्रदूषक धुल जाते हैं।
  2. सूखा राहत व जलस्तर वृद्धि:
    सूखाग्रस्त क्षेत्रों में सिंचाई और पेयजल के लिए राहत।
  3. वनाग्नि नियंत्रण:
    वातावरण में नमी बढ़ाकर जंगलों में आग की तीव्रता कम की जा सकती है।
  4. वैज्ञानिक एवं वैश्विक प्रयोग:
    चीन, थाईलैंड, UAE, अमेरिका आदि देशों में मौसम नियंत्रित करने के लिए इसका उपयोग।

चिंताएं एवं आलोचनाएं

  • पर्यावरणीय क्षति:
    रसायनों का बहाव जल स्रोतों को प्रदूषित कर सकता है।
  • अस्थायी समाधान:
    मूल समस्याएं जैसे पराली जलाना, वाहन प्रदूषण आदि पर कोई असर नहीं।
  • नैतिक एवं कानूनी प्रश्न:
    मौसम में हस्तक्षेप से जुड़ी नैतिकता और अधिकारों को लेकर चिंता।
  • दीर्घकालिक पारिस्थितिक प्रभाव:
    रसायनों के संचय से मिट्टी, पौधों और खाद्य श्रृंखला पर प्रभाव संभव।

नवीन पहल: दिल्ली सरकार की योजना (जुलाई 2025)

दिल्ली सरकार ने पहली बार 4–11 जुलाई के बीच कृत्रिम वर्षा कराने की योजना बनाई है। इस पहल का नेतृत्व IIT कानपुर कर रहा है। संशोधित विमानों के माध्यम से क्लाउड सीडिंग की जाएगी और इसकी योजना भारतीय मौसम विभाग (IMD) को सौंपी गई है। इसका मुख्य उद्देश्य वायु प्रदूषण में तात्कालिक राहत देना है।

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