चोल वंश का इतिहास

विषय सूची

प्रस्तावना

भारतीय इतिहास में चोल वंश दक्षिण भारत का एक अत्यंत शक्तिशाली और दीर्घकालीन राजवंश था, जिसने न केवल दक्षिण भारत बल्कि श्रीलंका, मालदीव और दक्षिण-पूर्व एशिया तक अपना प्रभाव स्थापित किया। चोलों ने समुद्री शक्ति, शासन व्यवस्था, मंदिर स्थापत्य, और कला-संस्कृति के क्षेत्र में महान योगदान दिया।

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उत्पत्ति और प्रारंभिक इतिहास

  • चोल वंश की प्राचीनता संगम युग (ईसा पूर्व) तक जाती है
  • प्रारंभिक राजधानी: उरैयूर, बाद में तंजौर (तंजावुर)
  • दो प्रमुख काल:
    1. प्राचीन चोल वंश (संगम काल)
    2. मध्यमकालीन चोल वंश (850–1279 ई.)

मध्यकालीन चोल वंश की स्थापना

  • संस्थापक: विजयालय चोल (850 ई.)
  • पल्लवों को पराजित कर तंजौर को राजधानी बनाया
  • विजयालय के बाद चोलों ने साम्राज्य विस्तार प्रारंभ किया

प्रमुख चोल शासक

शासक का नामशासनकालप्रमुख योगदान
राजराज चोल I985–1014 ई.चोल साम्राज्य का विस्तार, बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण
राजेन्द्र चोल I1014–1044 ई.गंगा अभियान, श्रीलंका, मलाया तक विजय अभियान
राजाधिराज चोल I1044–1054 ई.चालुक्य युद्ध, उत्तर की ओर अभियान
कुलोत्तुंग चोल I1070–1122 ई.प्रशासनिक सुधार, शांति और व्यापारिक संबंध

चोल प्रशासन व्यवस्था

केन्द्रीय शासन

  • राजा को ‘चक्रवर्ती‘ कहा जाता था
  • मंत्रीमंडल, सेनाध्यक्ष, खजांची आदि नियुक्त होते थे
  • जासूस तंत्र सशक्त

स्थानीय शासन

  • ग्राम सभा (उर), सभा (ब्राह्मण गांव), नगरम (व्यापारी)
  • लोकतांत्रिक चुनाव प्रणाली — कुडवोलै प्रणाली (लॉटरी द्वारा चयन)
  • मंदिर प्रशासन में भी जनता की भागीदारी

सैन्य और नौसैनिक शक्ति

  • शक्तिशाली स्थलीय सेना और संगठित नौसेना
  • श्रीलंका, मालदीव, सुमात्रा, जावा, मालाया तक समुद्री अभियान
  • दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय संस्कृति का विस्तार

धर्म और मंदिर निर्माण

  • हिंदू धर्म के शैव संप्रदाय के अनुयायी
  • बृहदेश्वर मंदिर (राजराजेश्वर मंदिर) – तंजौर में स्थित, UNESCO विश्व धरोहर स्थल
  • गंगैकोंड चोलपुरम, ऐरावतेश्वर मंदिर – उत्कृष्ट मंदिर स्थापत्य
  • मंदिरों को धार्मिक, आर्थिक और सामाजिक केंद्र के रूप में विकसित किया

कला, साहित्य और संस्कृति

  • तमिल भाषा और साहित्य को संरक्षण
  • ‘कंब रामायण’ (कवि कंबर द्वारा)
  • संगीत, नृत्य (भरतनाट्यम), और मूर्तिकला का उत्कर्ष
  • कांस्य प्रतिमाएं — विशेष रूप से नटराज की मूर्ति प्रसिद्ध

चोल वंश का पतन

  • 12वीं सदी के बाद उत्तर और दक्षिण में अन्य राजवंशों का उदय
  • चालुक्य, पांड्य और होयसला वंशों से निरंतर संघर्ष
  • 1279 ई. में पांड्य वंश द्वारा चोल वंश का अंत

निष्कर्ष

चोल वंश भारतीय इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है। उन्होंने न केवल राजनीतिक और सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया, बल्कि समुद्री वाणिज्य, लोकतांत्रिक प्रशासन, और कला-संस्कृति को जो ऊँचाई दी, वह आज भी अनुकरणीय है। उनकी स्थापत्य धरोहरें आज भी दक्षिण भारत की पहचान हैं।

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