प्रस्तावना
भारत के झारखंड राज्य के आदिवासी संघर्षों में कई आंदोलन हुए, जिनमें से एक महत्वपूर्ण आंदोलन था धनकटिया आंदोलन। यह आंदोलन झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और आदिवासी नेता शिबू सोरेन के नेतृत्व में चला। इस आंदोलन का उद्देश्य आदिवासी किसानों के अधिकारों की रक्षा करना और शोषण के खिलाफ आवाज उठाना था।
धनकटिया आंदोलन क्या था?
धनकटिया आंदोलन 1970 के दशक में शुरू हुआ एक आदिवासी जनआंदोलन था, जिसका केंद्रबिंदु झारखंड के विभिन्न आदिवासी बहुल क्षेत्र थे। इसका मुख्य उद्देश्य था –
- धान की कटाई में दलालों और जमींदारों की लूट को रोकना
- आदिवासी किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य दिलाना
- साहूकारों और बिचौलियों के शोषण से मुक्ति दिलाना
आंदोलन का पृष्ठभूमि
झारखंड के आदिवासी इलाकों में धान की खेती प्रमुख थी। कटाई के समय बाहरी व्यापारी और स्थानीय जमींदार बहुत कम दाम देकर या जबरन धान ले जाते थे। किसान मजबूरी में अपना अनाज औने-पौने दाम पर बेचने को विवश होते थे।
- बिचौलिये किसानों को कर्ज में फँसाकर उनके खेतों की फसल हड़प लेते थे।
- धान की तौल और मूल्य में भारी हेराफेरी होती थी।
- गरीब किसान इस अन्याय के खिलाफ संगठित नहीं थे।
इन्हीं समस्याओं को देखते हुए शिबू सोरेन ने किसानों को एकजुट किया और आंदोलन का बिगुल फूंका।
आंदोलन की शुरुआत
- साल: लगभग 1974–75
- नेता: शिबू सोरेन (गुरुजी)
- स्थान: संताल परगना और आसपास के आदिवासी बहुल क्षेत्र
- रणनीति: किसानों को संगठित करना, मंडियों और बाजारों में उचित दाम की मांग करना, बिचौलियों के खिलाफ धरना-प्रदर्शन करना।
आंदोलन की प्रमुख माँगें
- किसानों को धान का उचित मूल्य मिले।
- बिचौलियों की धनकटिया प्रथा (जबरन धान कटाई और हड़पना) समाप्त हो।
- साहूकारों और जमींदारों द्वारा की जा रही लूट और कर्ज़ के जाल को खत्म किया जाए।
- सरकार धान खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय करे।
आंदोलन का नाम “धनकटिया” क्यों पड़ा?
झारखंड में “धन” का मतलब धान और “कटिया” का मतलब कटाई है। चूँकि यह आंदोलन किसानों की धान कटाई और उसके मूल्य से जुड़ा था, इसलिए इसे “धनकटिया आंदोलन” कहा गया।
आंदोलन के प्रभाव
- आदिवासी किसानों में जागरूकता बढ़ी।
- बिचौलियों की मनमानी काफी हद तक कम हुई।
- झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) को ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में मजबूत जनाधार मिला।
- यह आंदोलन आगे चलकर झारखंड अलग राज्य आंदोलन की नींव में एक महत्वपूर्ण ईंट साबित हुआ।
शिबू सोरेन की भूमिका
शिबू सोरेन ने इस आंदोलन में किसानों के लिए संघर्ष करते हुए कई बार जेल की सजा भी काटी। उन्होंने गांव-गांव जाकर लोगों को संगठित किया और “हमारा धान – हमारा हक़” का नारा दिया।
आज के संदर्भ में महत्व
धनकटिया आंदोलन केवल धान की कीमत का संघर्ष नहीं था, बल्कि यह आर्थिक आज़ादी और आदिवासी स्वाभिमान का प्रतीक भी था। आज भी झारखंड के किसान आंदोलनों में इसकी मिसाल दी जाती है।
निष्कर्ष
धनकटिया आंदोलन ने झारखंड के आदिवासी समाज को न केवल आर्थिक शोषण से लड़ने की प्रेरणा दी, बल्कि राजनीतिक रूप से भी उन्हें संगठित किया। शिबू सोरेन का यह संघर्ष आज भी झारखंड के इतिहास में मील का पत्थर माना जाता है।
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