प्रस्तावना:
भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे रहस्यमयी और उन्नत सभ्यताओं की खोज 20वीं सदी की सबसे बड़ी पुरातात्विक उपलब्धियों में से एक मानी जाती है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खोज ने न केवल भारत के इतिहास को 2000 साल पीछे ले जाया, बल्कि यह सिद्ध किया कि सिंधु घाटी की सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन और योजनाबद्ध नगर सभ्यताओं में से एक थी।
हड़प्पा की खोज (1921)
- खोजकर्ता: दयाराम साहनी
- स्थान: मोंटगोमेरी ज़िला (अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में)
- यह पहला स्थल था जहाँ से सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष मिले।
- प्रारंभ में इसे मात्र “प्राचीन इमारतें” माना गया था।
मोहनजोदड़ो की खोज (1922)
- खोजकर्ता: आर. डी. बैनर्जी
- स्थान: लरकाना ज़िला, सिंध (अब पाकिस्तान में)
- मोहनजोदड़ो का अर्थ है “मृतकों का टीला”
- यहाँ से ‘महान स्नानागार’, अन्न भंडारण, नालियाँ और शानदार ईंटों के मकान मिले।
प्रमुख पुरातात्विक साक्ष्य
- महान स्नानागार (Great Bath) – मोहनजोदड़ो
- प्रशासनिक भवन
- पशुपति मुहर – धर्म और लिपि का संकेत
- नारी प्रतिमा – “नर्तकी” (ब्रॉन्ज की बनी)
- खिलौने, आभूषण और औजार
- मिट्टी की सीलें और लेखन
महत्व:
- यह खोज भारतीय इतिहास में “पूर्व-वैदिक” सभ्यता का प्रमाण है।
- सिंधु सभ्यता की नगर व्यवस्था, व्यापार, और संस्कृति के बारे में जानकारी मिली।
- इतिहासकारों को यह समझने का अवसर मिला कि भारत में सभ्यता का विकास 5000 वर्ष पहले से ही प्रारंभ हो चुका था।
क्या अभी भी रहस्य है?
- सिंधु लिपि अब तक पढ़ी नहीं जा सकी है।
- इन नगरों के पतन के कारण अभी भी विवादास्पद हैं।
- क्या ये नगर किसी केंद्रीकृत शासन के अंतर्गत थे, यह भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है।
निष्कर्ष:
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खोज ने भारतीय इतिहास की धारा ही बदल दी। यह सिर्फ ईंट-पत्थरों की खोज नहीं थी, बल्कि भारतीय सभ्यता की प्राचीनता और वैज्ञानिकता का प्रमाण भी थी।