प्राचीन काल में झारखंड

विषय सूची

झारखंड का प्राचीन नाम और पहचान

  • झारखंड का उल्लेख प्राचीन काल में विभिन्न नामों से मिलता है:
    • अतविका जनपद (महाजनपद काल में)
    • किकटा देश (ऋग्वेद में)
    • पुलिंद, अंश, विदेह और मगध के सीमावर्ती क्षेत्र
    • वनांचल (जंगलों वाला क्षेत्र)
    • मुण्डारी भाषा में झार = जंगल, खंड = भाग, यानी जंगलों का प्रदेश

पाषाण युग में झारखंड

पुरापाषाण युग (लगभग 250000 – 10000 ई.पू.)

  • प्रमुख स्थल: चिरकी, तपोवन, कुल्ही, सिंगभूम, हज़ारीबाग
  • औजार: हाथ से बने हुए पत्थर के औजार (हथौड़ा, कुल्हाड़ी)
  • लोग शिकारी और भोजन संग्रहकर्ता थे।

मध्य पाषाण युग (10000 – 6000 ई.पू.)

  • स्थल: बिरनी (गिरिडीह), चट्टी (हजारीबाग)
  • औजार अधिक परिष्कृत और छोटे (microliths) हो गए।
  • लोग झुंडों में रहते थे, खेती की शुरुआत

नवपाषाण युग (6000 – 2000 ई.पू.)

  • स्थल: चिरकी, गुड़िया, नावाडीह (हजारीबाग)
  • स्थायी बस्तियों का निर्माण
  • काष्ठ और पत्थर के औजार, मिट्टी के बर्तन
  • प्रारंभिक कृषि, पशुपालन और कुटीर उद्योग

हड़प्पा और झारखंड का संपर्क

  • हड़प्पा संस्कृति (2500–1900 ई.पू.) के साथ प्रत्यक्ष संबंध नहीं, परंतु लौह युग में संपर्क हुआ।
  • झारखंड के लोहा संसाधन का उपयोग मौर्य और गुप्त काल में हुआ।

वैदिक काल और झारखंड

  • ऋग्वेद में “किकटा देश” का वर्णन मिलता है, जिसे झारखंड का हिस्सा माना गया।
  • इस क्षेत्र को आर्य सभ्यता के बाहर माना गया।
  • अनार्य जातियाँ जैसे कि असुर, नाग, मुंडा, संथाल आदि यहां की मूल निवासी थीं।

महाजनपद काल (600–300 ई.पू.)

  • झारखंड अतविका जनपद के अंतर्गत आता था।
  • महावंश और अंगुत्तर निकाय ग्रंथों में उल्लेख
  • मगध महाजनपद के प्रभाव में था।

मौर्य काल (322–185 ई.पू.)

  • चंद्रगुप्त मौर्य ने झारखंड के वनवासी क्षेत्रों को अपने अधीन किया।
  • अशोक के अभिलेखों में “अतविका जनपद” का उल्लेख है।
  • कलिंग युद्ध (261 ई.पू.) में झारखंड के कुछ जनजातीय समूहों ने भाग लिया।

शुंग, कण्व और कुषाण काल

  • इस काल में झारखंड की सीमांत स्थिति बनी रही।
  • धार्मिक रूप से शैव, नाग पूजा, प्रकृति पूजा का चलन रहा।

गुप्त काल (319–550 ई.)

  • झारखंड पर गुप्त वंश का प्रभाव रहा।
  • समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति में यहां के वन राजाओं का उल्लेख:
    • अयोध, पुलिंद, ताम्रलिप्ति, समता आदि जनपदों के साथ झारखंड के जनजातीय क्षेत्र भी आए।
  • धातु शिल्प, लौह उत्पाद और वन उपज के लिए यह क्षेत्र प्रसिद्ध था।

स्थानीय जनजातीय शक्तियाँ

  • असुर जनजाति: प्राचीन लोहा गलाने की कला में पारंगत
  • मुंडा, संथाल, हो, बिरहोर आदि ने अपने पारंपरिक सामाजिक शासन बनाए रखा
  • धार्मिक विश्वास: प्रकृति पूजा, भूत-प्रेत, नाग पूजा

जनजातीय संस्कृति और सामाजिक जीवन

  • सामाजिक संगठन कबीलाई रूप में
  • प्रमुख सामाजिक संस्था: परगना, मांझी, मांझी-परगना सभा
  • विवाह, मृत्यु, कृषि से जुड़े अनुष्ठान प्रकृति पर आधारित
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