भारत के मध्यकालीन इतिहास में चोल साम्राज्य का नाम शक्ति, वैभव और समुद्री साम्राज्य विस्तार के लिए जाना जाता है। सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम (1014–1044 ई.) ने न केवल दक्षिण भारत को संगठित किया, बल्कि समुद्र पार दक्षिण-पूर्व एशिया तक भारत का परचम लहराया। उन्हें “गंगाईकोंड चोल” (गंगा जल लाने वाला चोल) और “भारत का समुद्री सम्राट” कहा जाता है।
राजराजा चोल से मिली विरासत
राजेंद्र चोल के पिता राजराजा चोल प्रथम ने पांड्य, चेर, गंग और कलिंग राज्यों को पराजित कर चोल साम्राज्य को दक्षिण भारत की सबसे बड़ी शक्ति बनाया। 1012 ईस्वी में राजेंद्र को सह-सम्राट घोषित किया गया। युद्ध कौशल, रणनीतिक बुद्धि और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें एक आदर्श उत्तराधिकारी बना दिया।
उत्तर भारत में गंगा तक विजय अभियान
राजेंद्र चोल ने अपने सैन्य अभियानों की शुरुआत पांड्य, चेर और चालुक्यों के विरुद्ध की। इसके बाद कलिंग, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और बंगाल तक चढ़ाई की।
- बंगाल के पाल शासक महिपाल की हार
- गंगाजल लेकर चोल गंगा जलाशय (पोननेरी झील) का निर्माण
- नई राजधानी गंगाईकोंड चोलपुरम की स्थापना
इस विजय ने राजेंद्र चोल को “गंगाईड चोल” की उपाधि दिलाई।
1025 ईस्वी : श्रीविजय साम्राज्य पर नौसैनिक आक्रमण
दक्षिण-पूर्व एशिया के श्रीविजय साम्राज्य (आज का इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड) ने चोल व्यापारिक जहाजों को बाधित किया।
- राजेंद्र चोल ने पहली बार भारतीय नौसेना को समुद्र पार भेजा
- सुमात्रा के पालमबैंग पर सीधा हमला, श्रीविजय राजा संग्राम विजयतुंग वर्मन बंदी
- मलक्का और सुंडा जलसंध पर चोल शक्ति का दबदबा
यह भारत का पहला और सबसे प्रभावशाली विदेशी समुद्री विजय अभियान था जिसने चोलों को अंतरराष्ट्रीय शक्ति के रूप में स्थापित किया।
प्रशासन और सांस्कृतिक योगदान
राजेंद्र चोल केवल योद्धा ही नहीं, दूरदर्शी प्रशासक भी थे।
- स्थानीय स्वशासन (ग्राम पंचायत) को प्रोत्साहन
- सिंचाई परियोजनाओं, झीलों और नहरों का निर्माण
- व्यवस्थित भूमि सर्वेक्षण और कर नीति
- हिंदू और बौद्ध दोनों संस्थाओं को संरक्षण
- तमिल व्यापारिक गिल्ड्स (मणिग्रामम, ऐवोल, एनुरवर) को विदेशी बाजार तक पहुँच
भारत के पहले वैश्विक सम्राट की पहचान
राजेंद्र चोल प्रथम ने यह सिद्ध किया कि भारत केवल स्थल शक्ति ही नहीं बल्कि समुद्री महाशक्ति भी था। उनका शासन व्यापार, संस्कृति और प्रशासनिक दृष्टि से आदर्श माना जाता है।
