प्रस्तावना:
वैदिक काल भारतीय इतिहास का वह युग है, जिसने भारतीय संस्कृति, धर्म, दर्शन और सामाजिक व्यवस्था की नींव रखी। यह काल लगभग 1500 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व तक माना जाता है, और इसे दो भागों में विभाजित किया जाता है – ऋग्वैदिक काल और उत्तरवैदिक काल।
वैदिक ग्रंथ:
- ऋग्वेद: सबसे प्राचीन वेद, इसमें 1028 ऋचाएँ हैं।
- अन्य वेद: यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद
- ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक, उपनिषद आदि भी इसी काल की रचनाएँ हैं।
ऋग्वैदिक काल (1500–1000 ईसा पूर्व):
समाज:
- कबीलाई समाज, कुटुंब प्रमुख ‘गृहपति’
- जाति व्यवस्था नहीं के बराबर थी
- स्त्रियों की स्थिति समान अधिकार वाली थी (गargi, lopamudra)
अर्थव्यवस्था:
- गोधन (गायों) को संपत्ति माना जाता था
- कृषि, पशुपालन, रथ निर्माण
- सिक्कों का प्रयोग नहीं था
धर्म और दर्शन:
- देवताओं की पूजा: इन्द्र, अग्नि, वरुण
- यज्ञ और हवन प्रमुख
- मूर्ति पूजा नहीं थी
उत्तरवैदिक काल (1000–600 ईसा पूर्व):
समाज:
- वर्ण व्यवस्था का विकास (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र)
- स्त्रियों की स्थिति में गिरावट
- उपनयन संस्कार और गुरु-शिष्य परंपरा
अर्थव्यवस्था:
- कृषि अधिक उन्नत, हल और बैल का प्रयोग
- व्यापार में वृद्धि
- सिक्कों (निष्क, शतमान) का प्रयोग आरंभ
धर्म और दर्शन:
- यज्ञों की जटिलता बढ़ी
- उपनिषदों में आत्मा-परमात्मा का दर्शन
- कर्म सिद्धांत और पुनर्जन्म की अवधारणा
शिक्षा प्रणाली:
- गुरुकुल व्यवस्था
- मौखिक परंपरा से शिक्षा
- विद्यार्थी जीवन: ब्रह्मचर्य आश्रम
- वेद, गणित, व्याकरण, खगोलशास्त्र की शिक्षा
प्रमुख स्थल:
- सप्त सिंधु क्षेत्र (पंजाब, हरियाणा)
- कुरु, पांचाल, कोसल, विदेह जैसे जनपदों का उदय
निष्कर्ष:
वैदिक काल भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक और दार्शनिक जड़ों की आधारशिला है। इस युग ने न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक मूल्यों को जन्म दिया, बल्कि भारतीय समाज की संरचना को भी आकार दिया।